Monday, January 26, 2009

परम श्रद्धेय छुल्लक जिनेन्द्र वर्णी जी ...जीवन परिचय...

आपका जन्म 14-5-1922 को 81/4 जैन स्ट्रीट ,पानीपत में बाबु जय भगवान जैन ऐडवोकेट एवं श्रीमती गुणमाला जैन के यहाँ हुआ । आपका एक भाई नरेश चंद जैन एवं तीन बहिने प्रभावती ,कमलेश एवं सुशीला जैन हैं । आपने शिक्षा दशम कक्षा व बिजली ,रेडियो विज्ञान में पूर्ण दक्षता प्राप्त की । आपने पानीपत में इंडियन ट्रेडर्स फर्म की स्थापना की व वृद्धि कर कलकत्ता में ऍम -ई -एस- की ठेकेदारी की । 1949 में आपकी अध्यात्म में रूचि जाग्रत हुई और पंडित रूपचंद जैन गार्गीय (अध्यात्म गुरु )से 1950 में स्वाध्याय सीखना व करना प्रारम्भ किया । 1954-55 में आप ज्ञान उद्भ्व के लिए सोनगढ़ चले गए और स्वाध्यायरत रहते हुए आपसे जैनेन्द्र प्रमाण कोष व जैनेन्द्र शब्द कोष का बनना हुआ । 1957 में आपने ग्रह त्याग कर अणुव्रत धारण किया । 1961 में आचार्य श्री बिमल सागर जी से इसरी में आपने छुल्लक दीक्षा ग्रहण की और स्वाध्याय की गहनता में जैनेन्द्र प्रमाण कोष का संशोधन कर "जैनेन्द्र सिद्धांत कोष "की रचना 1965 में की । शारीरिक अस्वस्थता के कारण 1970 में आपने छुल्लक पद का त्याग कर दिया । 1974 में भारतीय ज्ञानपीठ ने आपको सम्मानित किया और 7-4-1981 को वैशाली शोध संस्थान ने बिहार के राज्यपाल डा.ए.आर .किदवई के द्वारा आपको सम्मानित किया । आचार्य श्री विद्या सागर जी के सान्निध्य में 12-4-1983 को आपने सल्लेखना व्रत लिया ,21-4-1983 को आचार्य श्री विद्या सागर जी से पुनः छुल्लक दीक्षा ग्रहण की (क्षु . सिद्धांत सागर जी महाराज ) ,आपने 42 दिन की सल्लेखना पूर्ण करते हुए ,अन्तिम समय में लंगोटी का भी त्याग कर मुनि अवस्था धारण कर 24-5-1983 को प्रातः 11.0o बजे णमोकार मंत्र के उच्चारण के साथ शांत मुद्रा में ,आचार्य श्री विद्या सागर जी को नमोस्तु करते हुए सल्लेखना पूर्ण की ।

Thursday, January 15, 2009

वर्णी वचनामृत

प्रत्येक क्षण प्रभु की प्रेरणायें भीतर से आती रहती हैं ,जो व्यक्ति जागृत होकर उन्हें सुनता है,और उसी के अनुसार आचरण करता है,उसका जीवन सत्यपथ का अनुगामी हो जाता है ।

श्री जिनेन्द्र वर्णी साहित्य



1.जैनेन्द्र सिद्धांत कोष (पाँच भाग)-जैन धर्म का ensyclopedia -
वर्णी जी की एकनिष्ठ साधना व स्वाध्याय के फल स्वरुप प्राप्त अद्वितीय कृति
(क )6000 शब्दों और 21000 विषयों का सांगोपांग विवेचन।
(ख )प्राकृत संस्कृत और अपभ्रंश के 100 से अधिक प्रमाणिक ग्रंथों से संकलित उद्धरण सन्दर्भ और हिंदी अनुवाद के साथ शब्दों और विषयों का संक्षिप्त परिचय
(ग)300 सारणियों और चित्रों द्वारा विषय का स्पष्टीकरण।
(घ )शोधकर्ताओं ,विद्वानों ,लेखकों और प्रवचनकारों के लिए अभूतपूर्व ग्रन्थ।
2.शांति पथ प्रदर्शन -
अध्यात्म विज्ञान और शांति के मार्ग को दिखाने वाला अत्यंत सरल और हृदय ग्राही प्रवचनों का संग्रह।
3.समण सुत्तं -(श्रमण सूत्र )
पूज्य विनोबा जी की प्रेरणा से 756 गाथाओं का संकलन। श्रमण संस्कृति के दर्शन का संक्षिप्त परिचय।
4. कर्म सिद्धांत 5. कर्म रहस्य -
कर्म के सूक्ष्म रहस्यों का सहज तथा सरल भाषा में विवेचन। कठिन आगम ग्रंथों का आलोडन कर नवनीत के समान प्रस्तुतिकरण।
6. सत्य दर्शन -
सत्य का अनुभव करानेवाली अद्वितीय पुस्तक।
7. पदार्थ विज्ञान -
जीव आदि पदार्थों का वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन करने वाला संक्षिप्त ग्रन्थ।

8. वर्णी दर्शन -
श्री गणेश प्रशाद वर्णी जी के जीवन का सरल भाषा में दर्शन।
9. अध्यात्म लेखमाला -
आध्यामिक लेखों का संग्रह।
10- कुन्द -कुन्द दर्शन -
आचार्य कुन्द -कुन्द जी के सूत्रों पर सरल भाषा में विवेचन।
11. नय दर्पण -
स्यादवाद और अनेकांत जैसे सिद्दांतों का नयों के द्वारा दर्पण वत सहज सरल विवेचन।
12. सर्व धर्म सम्भाव -
सभी धर्म समान रूप से एक हैं।
13. प्रभु वाणी -
अन्तरात्मा से निकली वाणी का सरल वाक्यों में प्रतिपादन।
14. महायात्रा -
सभी दर्शनों का संक्षिप्त परिचय।
15. जैन सिद्धांत शिक्षण -
जैन सिद्धांत का प्रश्नोत्तर विधि से शिक्षण।


Tuesday, January 13, 2009

वर्णी वचनामृत

-जिस प्रकार नारियल के भीतर सारभूत गिरी स्थित है उसी प्रकार शरीर के भीतर चेतन तत्त्व स्थित है ।
-कीर्ति प्रतिष्ठा का भाव कल्याण पथ का सबसे बड़ा शत्रु है । शास्त्र ज्ञान के बिना साधना सम्भव नही,परन्तु शास्त्र ज्ञान का गर्व साधना के लिए दावाग्नि सदृश्य है ।
३-पवित्रता का अर्थ कोरा विषय निग्रह करना ही नही है बल्कि विचारों में भी शुचिता लाना है ।
४-दृष्टि बदल जाने का अर्थ है बाह्य प्रतीति का लोप होना,मान -अपमान,निंदा स्तुति का भाव ही न रहना ।
५-भगवान की शरण में जा और पूरे विश्वास के साथ उनका चिंतवन कर,उनकी कृपा से तेरे कर्म शिथिल पड़ेंगे ।









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