Tuesday, January 13, 2009

वर्णी वचनामृत

-जिस प्रकार नारियल के भीतर सारभूत गिरी स्थित है उसी प्रकार शरीर के भीतर चेतन तत्त्व स्थित है ।
-कीर्ति प्रतिष्ठा का भाव कल्याण पथ का सबसे बड़ा शत्रु है । शास्त्र ज्ञान के बिना साधना सम्भव नही,परन्तु शास्त्र ज्ञान का गर्व साधना के लिए दावाग्नि सदृश्य है ।
३-पवित्रता का अर्थ कोरा विषय निग्रह करना ही नही है बल्कि विचारों में भी शुचिता लाना है ।
४-दृष्टि बदल जाने का अर्थ है बाह्य प्रतीति का लोप होना,मान -अपमान,निंदा स्तुति का भाव ही न रहना ।
५-भगवान की शरण में जा और पूरे विश्वास के साथ उनका चिंतवन कर,उनकी कृपा से तेरे कर्म शिथिल पड़ेंगे ।

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