1. सरलता -आपका जीवन अत्यंत सरल था। जो भी आपके पास प्रेम से जाता उसे सरल और मधुर शब्दों में अपनी बात समझा देते थे।
2. कर्मठता -आप जिस कार्य में लग जाते उसे पूर्ण करते थे। इसी कर्मठता के फल स्वरुप आपने अद्वितीय ग्रंथों की रचना की।
3. मौन साधक -आपने अपना अधिकांश समय मौन से ही व्यतीत किया ,शहरों से दूर एकांत वास करते हुए मौन रहकर जिनवाणी की साधना करी।
4. संप्रदाय से दूर -आप संप्रदाय और रूढ़ियों से दूर रहे ,आप कहा करते थे मैं न जैन न अजैन न हिन्दू न मुसलमान अथवा मैं सब कुछ हूँ।
5. वैज्ञानिक दृष्टिकोण -आपने अपने ग्रंथों और प्रवचनों में धर्म को मात्र कहने से अपनाने के स्थान पर अपने जीवन पर प्रयोग करके अपनाने को कहा।
6. यथापात्र मार्गदर्शक -आप मंच पर उपदेश के स्थान पर जिज्ञासु की पात्रता के अनुसार उसका मार्गदर्शन करते थे।
7.अनेकांतवादी - आप धार्मिक वाद -विवाद नहीं करते थे,क्योंकि आपके अनुसार किसी न किसी अपेक्षा से सभी धर्म अपने में सही होते हैं।
8. दुर्बल तन दृढ आत्मबल -आपने क्षीण काय होते हुए भी आत्मिक शक्ति द्वारा कठोरतम साधना करके अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
9. शांतिपथगामी-आप जीवन पर्यन्त प्रत्येक परिस्थिति में अपनी शान्ति में अडिग रहे।
10. वज्र से कठोर कुसुम से कोमल -आप अपनी आत्म साधना के प्रति अत्यन्त दृढ थे और व्यव्हार में मातृवत थे।
Friday, April 9, 2010
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बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeletenirmal
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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